भारत महान परंपराओं वाला देश है. इसकी अनेक महान परंपराओं में से एक परंपरा यह भी है कि यहाँ ईश्वर की कल्पना पुरुष के साथ साथ स्त्री रूप में भी की गई है तथा यह माना गया है कि जहाँ स्त्रियों की पूजा की जाती है वहाँ देवता निवास करते हैं. “विश्व में संभवतः भारत एकमात्र ऐसा देश है और भारतीय संस्कृति एकमात्र ऐसी संस्कृति है जहाँ स्त्री को ‘देवी’ कहा जाता है, उसके नाम के साथ ‘देवी’ जोड़ा जाता है, जहाँ विद्या, संपदा, शक्ति की अधिष्ठाता शक्तियों को सरस्वती, लक्ष्मी, दुर्गा – यों स्त्रीरूप में दर्शाया जाता है. यूनानी, रोमन सभ्यताओं में भी विशिष्ट कार्यों, व्यवसायों के विशिष्ट देवी-देवता हैं लेकिन उनकी इतने पूज्य-भाव से घर-घर में और सार्वजनिक तौर पर और इतने सुदीर्घ काल से पूजा नहीं होती है. भारत में ‘माँ’ का स्थान अत्यंत पूज्य और आदरणीय है, पत्नी अपने पति की ‘अर्धांगिनी’ है लेकिन सदियों के भारतीय सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक इतिहास से स्त्री ‘विलुप्त’ है, निम्नतम सोपान पर है. जन्मपूर्व सामाजिक, व्यक्तिगत आकांक्षाओं से लेकर देहांत के बाद भी पराधीन है.”(डॉ.राजम पिल्लै, महाराष्ट्र की संत कवयित्रियाँ, पृ. 3)
आचरण के स्तर पर देवी स्वरूपा स्त्री के साथ पशु से भी बदतर व्यवहार के उदाहरण हमारे समाज में रोज ही मिलते रहते हैं. ऐसा लगता है जैसे सब ओर देवताओं के स्थान पर दानव रमण करने लगे हैं. प्रमाणस्वरूप गत दिनों गुवाहाटी में घटित कुकृत्य का उल्लेख किया जा सकता है. “एक नाबालिग लड़की पर टूट पड़े वहशी दरिंदों की करतूत को कैमरे में कैद करने की हिम्मत दिखाने वाले मीडियाकर्मी दीप्य बोरदोलोई से जब सोमवार की इस आंखों देखी घटना के बारे में पूछा गया तो उनके पहले लफ्ज थे,'यह छेड़छाड़ नहीं सामूहिक दुष्कर्म जैसा वाकया था।' गुवाहाटी में एक स्थानीय चैनल न्यूजलाइव के रिपोर्टर दीप्य ने दावा किया कि उन्होंने लड़की को छोड़ने की कई बार गुहार लगाई, लेकिन उन उन्मादी युवकों ने एक न सुनी। उन दुस्साहसी युवकों की भीड़ बढ़ती गई। युवकों के उग्र तेवरों को देख दीप्य ने कैमरामैन से इन शर्मसार करने वाली तस्वीरों को कैद करने का इशारा किया। सोमवार रात को शहर के भीड़ भरे इलाके में फर्राटा भरती गाड़ियों के बीच यह सबकुछ हो रहा था। पीड़िता चीखती-चिल्लाती रही, लेकिन कोई उसके बचाव में आगे नहीं आया। कुछ राहगीर तमाशबीन बनकर देखते रहे, मगर किसी ने नशे में धुत उन युवकों को रोकने की कोशिश नहीं की। आरोपियों ने लड़की का चेहरा कैमरे की ओर करने की कोशिश भी की, जैसे वह कोई बहादुरी का काम कर रहे हों। घटनास्थल से एक किमी दूर पुलिस स्टेशन होने के बावजूद पुलिसकर्मी 40 मिनट बाद वहां पहुंचे। असंवेदनशीलता में डूबी पुलिस इंटरनेट पर वीडियो देखकर भड़के लोगों के गुस्से के बाद ही नींद से जागी।“ (जागरण, 14 जुलाई, 2012).
कहना न होगा कि इस प्रकार की घटनाएँ इंसानियत को शर्मसार करने वाली घटनाएँ हैं. इनसे हमारा यह महान देश भी कलंकित होता है. ऐसी हालत में किसी भी संवेदनशील व्यक्ति का विचलित हो उठना स्वाभाविक है. लेकिन यह और भी चिंताजनक है कि जिन्हें विचलित होना चाहिए वे ज़रा भी विचलित दिखाई नहीं देते. शायद इसी से दुखी और हताश होकर ‘फेसबुक’ पर डॉ.कविता वाचक्नवी ने यह लिखा कि “पुरुषरहित होना ही इस (दुनिया) का अपराधरहित होना है क्योंकि संसार के सारे अपराध (क्राइम) पुरुष ही से शुरू होते और उसी पर अंत होते हैं या उसी के इर्दगिर्द के कारणों ही से उपजते हैं।” यह कथन हमें यह सोचने के लिए विवश करता है कि क्या हमारा पुरुष समाज अभी तक सभ्य नहीं हुआ है और उसे इतना सभ्य होने में और कितने युग लगेंगे कि इस धरती पर स्त्रियाँ अपने आपको पुरुषों के होते हुए भी सुरक्षित महसूस कर सकें.
सारांश यह है कि जब तक स्त्री के प्रति बर्बरता रहेगी तब तक हमें सभ्य समाज नहीं माना जा सकता.
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