मंगलवार, 24 जुलाई 2012

पुनश्चर्या पाठ्यक्रम का चौदहवाँ दिन

23/07/2012 की सुर्खियाँ

· प्रसिद्ध उपन्यास 'मुझे चाँद चाहिए' के लेखक श्री सुरेंद्र वर्मा का नगर आगमन

· 'साहित्य : फ़िल्में' पर श्री सुरेंद्र वर्मा का व्याख्यान 

· 'विज्ञापन और एस एम एस की भाषा' पर मौलाना आजाद राष्ट्रीय उर्दू विश्वविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. तेजस्वी वेंकप्पा कट्टीमनी का व्याख्यान 

पुनश्चर्या पाठ्यक्रम का चौदहवाँ दिन.


श्री सुरेंद्र वर्मा के व्याख्यान का सार संक्षेप 


'साहित्य : फिल्में' पर व्याख्यान देते हुए श्री सुरेंद्र वर्मा ने कहा कि किसी भी साहित्यकार की जिंदगी में बार बार एक शब्द आता है, वह है इंटरप्रेटेशन. समय के साथ साथ तकनीक में भी बदलाव आ रहा है और साथ ही मानवीय संवेदनाएं भी बदल रही हैं. साहित्य के आधार पर जब फिल्मों का निर्माण होता है तब मूल लेखक को निर्देशक के काम में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए क्योंकि फिल्म में नाटकीयता बनाए रखने के लिए निर्देशक कुछ सीन्स को जोड़ भी सकता और जरूरत पड़े तो कुछ को छोड़ सकता है. यह कोई जरूरी नहीं कि उपन्यास, कहानी या नाटक में जो कुछ भी लिखा हो उसे हू-ब-हू फिल्म में दिखा जाए. लेखकों के सिलसिले में फिल्म इंडस्ट्री में एक कहावत बहुत प्रचलित है – 'Take Money and run away, never turn back.'

सुरेंद्र वर्मा ने यह बताया कि उन्हें उपन्यास या नाटक लिखने के बजाए फिल्म स्क्रिप्ट लिखना बेहद पसंद है. उन्होंने कहा कि पहले वे वेश्या समस्या पर आधारित - विशेष रूप से पुरुष जब इस वृत्ति को अपनाते हैं तो उनकी मनःस्थिति और मानसिकता क्या होगी पर - फिल्म स्क्रिप्ट लिखने बैठे थे. लेकिन दो-तीन सीन्स लिखने के बाद उन्हें यह लगा कि इस तरह की फिल्म को दर्शक नहीं स्वीकारेंगे तो उन्होंने 'दो मुर्दों के लिए गुलदस्ता' शीर्षक से उपन्यास का सृजन किया जिसे पढ़कर काफी लोगों ने उनसे यह कहा - इतना घटिया उपन्यास आपने कैसे लिखा. 

सुरेंद्र वर्मा ने 'Mr & Mrs Mathur – Gender Bender Comedy (Surendra Varma, FRA Registration No. 138041 dated 24/4/08) की पटकथा दिखाकर प्रतिभागियों को यह समझाया कि फिल्म स्क्रिप्ट मॉन्ताज (छोटे छोटे हिस्से) में लिखी जाती है. 


प्रो.टी.वी.कट्टीमनी के व्याख्यान का सार संक्षेप 

'विज्ञापन और एस एम एस की भाषा' पर व्याख्यान देते हुए मौलाना आजाद राष्ट्रीय उर्दू विश्वविद्यालय, हिंदी विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो.टी.वी.कट्टीमनी ने कहा कि विज्ञापन हमेशा अनुवाद को साथ लेकर चलता है. विज्ञापन एक कमर्शियल कंसेप्ट है. माल – कमाल – मालामाल, यही विज्ञापन दुनिया की नीति है. उत्पादक अपने माल को कमाल (आकर्षक विज्ञापनों) के साथ बेचकर मालामाल होना चाहते हैं. इसलिए इसमें प्रयुक्त भाषा हमेशा लचीली और आकर्षक होती है तथा साथ ही नवीन भी. ताजगी विज्ञापनों के लिए अनिवार्य तत्व है. उन्होंने यह भी कहा कि आजकल विज्ञापनों के कारण हर एक की मानसिकता बदल रही है. विज्ञापन ने उपभोक्ता को मुट्ठी में कर लिया है तो एस एम एस ने पूरी दुनिया को मुट्ठी में कर लिया है. 

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