गुरुवार, 19 जुलाई 2012

पुनश्चर्या पाठ्यक्रम का ग्यारहवाँ दिन


18/07/2012 की सुर्खियाँ

  •  'साहित्य और मीडिया' पर हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय, हिंदी विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो.रवि रंजन का व्याख्यान 
  •  'हैदराबाद में हिंदी नाटकों की स्थिति' पर मौलाना आज़ाद राष्ट्रीय उर्दू विश्वविद्यालय के असिस्टेंट प्रोफ़ेसर डॉ.करनसिंह ऊटवाल का व्याख्यान 
पुनश्चर्या पाठ्यक्रम का ग्यारहवाँ दिन.

प्रो.रवि रंजन के व्याख्यान का सार संक्षेप 

'साहित्य और मीडिया' पर व्याख्यान देते हुए हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय, हिंदी विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो.रवि रंजन ने कहा कि 'मीडिया के क्षेत्र में बहुत तेजी से क्रांति आई है. मीडिया के प्रसार के कारण ज्ञान सूचनात्मक हो गया है. यह सूचना अंतिम सत्य नहीं है. सूचना क्रांति के कारण हाशिए के लोग केंद्र में आ गए हैं. आज मनुष्य को मीडिया नचा रहा है. मीडिया के कारण झूठ का मानकीकरण हो रहा है. इसके परिणामस्वरूप पीत पत्रकारिता आगे बढ़ रही है. आज मीडिया ने रीडिंग हैबिट को कैप्चर कर लिया है. 

विज्ञापनों से मीडिया का वर्ग चरित्र पता चलता है. आवारा पूँजी मीडिया को प्रभावित कर रही है जिसके परिणामस्वरूप लोकहितकारी नीतियों के खिलाफ एक वातावरण तैयार हो रहा है. इसीलिए नामवर सिंह ने अपनी एक कविता में यूं कहा है – 'क्षमा मत करो वत्स, आ गया दिन ही ऐसा/ आँख खोलती कलियाँ भी कहती हैं पैसा.' मीडिया के कारण हमारी जीवन शैली बदल रही है. सपने भी बदल रहे हैं. यथार्थ में भी बहुत तेजी से बदलाव आया है. यथार्थ क्या है ! यथार्थ वह वस्तु सत्ता है जिसका अस्तित्व हमारी चेतना के बाहर है पर वह हमारी चेतना को प्रभावित करता है. आज मीडिया के कारण यथार्थ के बारे में हमारी धारणा भी बदल रही है. 

आज का समय अपने आप में आभासी समय है. पहले चीजें बन रहीं हैं और उन चीजों के अनुरूप एक उपभोक्ता वर्ग तैयार हो रहा है. इसी तरह कुछ ऐसे साहित्य भी हमारे सामने आ रहे हैं जो अपना पाठक वर्ग खुद तैयार कर रहे हैं. यदि हम किसी उपन्यास या नाटक या कहानी को पढ़ते हैं तो हमारी कल्पनाशक्ति जागृत होती है. पर यदि हम उसी को परदे पर देखते हैं तो हम वही देखते हैं जो हमारे सामने दिखाया जा रहा है. कहने का आशय यह है कि मीडिया ने हमारे परसेप्शन (ग्रहणबोध) को डिजिटलाइज्ड बना दिया है. इसके फलस्वरूप हमारे सामने एक आभासी दुनिया है – 'तांबे का आसमान, टिन के सितारे, गैसीले अंधकार, उड़ते हैं कस्कुट के पंछी बेचारे.'

भले ही मीडिया एक इंद्रजाल फैला रहा है यह शाश्वत नहीं है. विलियम रेमंड्स ने भी कहा है कि 'Media is mind manipulator.' पर साहित्य चिरस्थाई है.'


डॉ.करनसिंह ऊटवाल के व्याख्यान का सार संक्षेप 

'हैदराबाद में हिंदी नाटकों की स्थिति' पर व्याख्यान देते हुए मौलाना आज़ाद राष्ट्रीय उर्दू विश्वविद्यालय के असिस्टेंट प्रोफ़ेसर डॉ.करनसिंह ऊटवाल ने कहा कि आज भी हैदराबाद में नाटक खेले जा रहे हैं और देखे भी जा रहे हैं. उन्होंने यह स्पष्ट किया कि 'कहानी का रंगमंच' तथा 'कहानी का नाट्यरूपांतरण' दोनों अलग अलग हैं. कहानी के रंगमंच में किसी कहानी को हू-ब-हू मंच पर प्रस्तुत किया जाता है. जहां कहानी में वर्णन होता है उसे बैकग्राउंड में नेरेट किया जाता है. कहानी के नाट्यरूपांतरण में रंगमंच के अनुकूल कहानी को ढाला जाता है. 

डॉ.करनसिंह ऊटवाल ने हैदराबाद में स्थित कुछ नाट्य संस्थाओं और उनके द्वारा प्रदर्शित नाटकों के बारे में सूचनात्मक जानकारी प्रस्तुत की जो इस प्रकार है –

हैदराबाद की कुछ नाटक संस्थाएं –

· आवर्तन (सत्यब्रत रावत)

· सूत्रधार (विनय वर्मा)

· रंगधारा (भास्कर शेवालकर)

· सिफ़र (फिरोज़)

· उड़ान (सौरभ धारी पूरीकर )

· समाहारा (रत्नशेखर)

· कलाश्रोत (चंद्रकांत खानापुरकर)

· प्रदीप कुमार थियेटर अकादमी (प्रदीप कुमार)

· स्टार आर्ट अकादमी (महबूब)

· न्यू थियेटर (खादर अली बैग)

· खादर अली बैग थियेटर फाउण्डेशन (महमद अली बैग)


· 1952 में फाइन आर्ट्स अकादमी की स्थापना हुई.

· 1971 में भास्कर शिवालकर की संस्था 'रंगधारा' की स्थापना हुई.

· 1975 में देवेंद्र राज अंकुर ने निर्मल वर्मा की तीन कहानियों (डेढ़ इंच ऊपर, धूप का दुःख और वीकेंड) का मंचन किया.

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